Friday, July 29, 2011

ये जाग्रति का समय है................


 ये जाग्रति का समय है



जो लोग जनूनी  होते है, जो लोग पागल होते है,
जो लोग दीवाने होते है, इस पृथ्वी पर वो ही हितेहास बनाते,
जो लोग समझददार होते है . वो हो इतेहास पड़ते है .

धर्म यो बाधते न स धर्मः कुवर्त्म तत्।
अविरोधाद् यो धर्मः स धर्मः सत्य विक्रम।

हिन्दू धर्म 4 वर्णों मे बटा हुआ है .

क्रिस्चन   समाज 19  वर्णों मे बटा हुआ है .

इस प्रकार मुस्लिम  समाज 72 वर्णों मे बटा हुआ है.



क्रिस्चन और मुस्लिम  को जो एक सूत्र  मे जोड़ता है .वो है .धर्मांतरण .

भारत मे जो धर्मांतरण है .आप को जानकर  हैरानी होगी .भारत की 

भूमि मे इन संतो की भूमि मे  सात राज्य  इसे है .जहाँ  हिन्दू  

मिनोरिटी मे चले गये है है .कश्मीर  मे आये दिन भारत  का तिरंगा 

जलाया जाता है . मुझे एसा लगता है  केरला कश्मीर से पहले  

इस्लामिक घोषित हो जायेगा . 

1400 सो  सालो से हमारे उपर हमले जरी है .जिस का जीकर सयद 

बुखारी   मे  मिलता है .जिसे जागवत तुअल  हिंद कहते है .पहला 

हमला  अफगानिस्तान मे हुआ .कुरान के इलावा छे किताबे है .

ग्यारवी शताब्दी से  हमले जरी है .11 शताब्दी मे अफगानिस्तान 

खो दिया .1947 मे पाकिस्तान को खो दिया .

1971 में बंगलादेश को खो दिया . 90 के दशक मे कश्मीर खो रहे है.

भारतियों ये जाग्रति का समय है. 

गुरु तेगबहादुर बोलिया,
सुनो सिखो ! बड़भागियाधड़ दीजे धरम न छोड़िये..

मैं आप को एक गाने का जीकर करता हूँ      ."तुने साथ जो मेरा छोड़ा दीवाना तेरा मर जायेगा ."
                                                   "तुने नाता जो मुझ से तोडा दीवाना तेरा मर जायेगा. "

आप को पता है ये किस फिल्म का गाना है.फिल्म का नाम है "तेरे नाम"
इस फिल्म मे हीरो हिरोइन के लिए ये गाना गता है .और हमारे नोजवानो की भी ये ही position 
है  .२००८ के आकड़ो के अनुसार  छे हजार युवक युवतीओं ने प्रेम प्रसंग मे नाकामयाबी की वजहाँ से आत्म  हत्या कर ली.




"मैं पूछता हूँ क्या ये भावना आप के मन मे संतो के लिए नहीं आ सकती ."
"मैं पूछता हूँ क्या ये भावना देश के लिए नहीं आ सकती ."
"आप के परमात्मा के लिए नहीं आ सकती ."
"भारत माता के लिए नहीं आ सकती ."


मुझे इस बात मे कहने मे बिलकुल भी संकोच नहीं होगा की.अगर तेरे नाम जैसी फिल्म देख कर छे हजार युवक युवतियांओ  का जीवन नरक बन सकता है .

तो  भगत सिंह ,पृथ्वीराज चौहान ,शिवा जी ,महाराणा प्रताप ,महाराणा सांघा,चंदर शेखर आजाद , विवेकानंद 
जैसे महापुरशो  पर अगर  कोई फिल्म बनायीं जाती है तो  मुझे संच्कोच नही होगा की छे हजार नहीं तो क्या हुआ .
एक विवेकनद भी बनजाये या भगत सिंह भी बन जाये .महाराणा प्रताप भी बन जाये .देश कहाँ होगा हम सोच भी नहीं सकते.

आज हमारी हिस्टरी  को भी ख़तम किया जा रहन है अरे अगर तुम  भारत  की हिस्ट्री को तुम नहीं पड़ेंगे  तो  जैस  इस फिल्म को देख कर हुआ है .एसा होता रहेगा.

आज पाकिस्तान मे हिन्दुओ  को मारा जा रहन है .मे ये पूछता  हूँ .क्या वो मुसलमानों को परेशान कर रहे  है....? ?
या कुछ और कारन हो ...?एक करोड़ से भी ज्यादा बंगला देसी आज भारत मे है। घुस गये है .और वो देश के लिए कितना बड़ा खतरा है हम सोच भी नहीं सकते । लेकिन कांग्रेस को बोट बैंक की राजनिति करनी है । .आज बंगलादेश मे हिन्दुओ  का शोषण हो रहाँ है .हमारी हिन्दू लडकियो से बलात्कार किया जा रहां है । मैंने जब एक न्यूज़ चंनल पैर एक हिन्दू लड़की से सामूहिक बलात्कार की न्यूज़ सुनी । उस की माँ कहती है । मेरी बेटी से सामूहिक मत करो एक एक कर के जाओ । हम अनुमान नहीं लगा सकते की । क्या बीत रही उस समय उस माँ पर उस के भाई पर  ।यह सुन कर उस माँ का तो क्या किसी का भी हृदय फट जाये तू उस हिन्दू माँ ने कैसी सहें किया हो गा । लेकिन इस से उन्हें क्या परक पड़ता है । 

कांग्रेस को वोटो की राजनीती  करनी है न .अभी मैं ब्लॉग लिख रहा  हूँ पर भगवन से भी पुच्छ  रहा  हूँ की 
"बंगलादेश मे  के सामने गायें कटी जाती है." एसा क्या किया कसूर था उनका....?
 जिन्दा जलाया गया पूरा परिवार ..क्या कशुर था उन का ..?
  
बटवारे के समय पांच  हजार महिलाओ के स्तन काट कर कटे  बोरे मे भर कर हिंदुस्तान भेजे गये.....क्या कसूर था उनका.....?

मैं पूछना चाहता हूँ  १५ लाख महिलाओ का बलात्कार  किया गया .उस के बाद आरा  मशीन  मे कटा गया ...क्या कशुर था  उन का ......?

कश्मीर मे मरते हुए मासूमो का क्या कसूर था ....?


मैं कहता हूँ अमन शांति फिर से होओ .सरकार पर  निर्भर करता है की वो देश को कैसे चलती है .
सरकार   ब्रिटिश निति का प्रयोग कर रही है .फुट डालो राज करो.
जब हम एक समाज मे रहते है तो हम सब को एक कानून एक बन्नेर के निचे रहना चाहिए.
न की किसी को दुसरो से अलग अधिकार दिए जायें .मैं इस से कतई  सहमत नहीं हूँ .

वो तभी संभव होगा जब हमारी सरकारे ये चाहेंगी .वोट बैंक की राजनीती ख़तम होगी .






भारत के  लाल  कुछ  देश भगतो की कहानी इन्हें अवश्य पड़े   


महाराणा प्रताप की महानता

बात उन दिनों की है जब भामाशाह की सहायता से राणा प्रताप पुनः सेना एकत्र करके मुगलों के छक्के छुड़ाते हुए डूंगरपुर, बाँसवाड़ा आदि स्थानों पर अपना अधिकार जमाते जा रहे थे।
"किसी स्त्री पर राजपूत हाथ उठायेयह मैं सहन नहीं कर सकता। यह हमारे लिए डूब मरने की बात है।"
वे तेज ज्वर में ही युद्ध-भूमि के उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ खानखाना परिवार की महिलाएँ कैद थीं।
राणा प्रताप खानखाना के बेगम से विनीत स्वर में बोलेः
"खानखाना मेरे बड़े भाई हैं। उनके रिश्ते से आप मेरी भाभी हैं। यद्यपि यह मस्तक आज तक किसी व्यक्ति के सामने नहीं झुका, परंतु मेरे पुत्र अमर सिंह ने आप लोगों को जो कैद कर लिया और उसके इस व्यवहार से आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए मैं माफी चाहता हूँ और आप लोगों को ससम्मान मुगल छावनी में पहुँचाने का वचन देता हूँ।"
उधर हताश-निराश खानखाना जब अकबर के पास पहुँचा तो अकबर ने व्यंग्यभरी वाणी से उसका स्वागत कियाः
"जनानखाने की युद्ध-भूमि में छोड़कर तुम लोग जान बचाकर यहाँ तक कुशलता से पहुँच गये?"
खानखाना मस्तक नीचा करके बोलेः "जहाँपनाह ! आप चाहे जितना शर्मिन्दा कर लें, परंतु राणा प्रताप के रहते वहाँ महिलाओं को कोई खतरा नहीं है।" तब तक खानखाना परिवार की महिलाएँ कुशलतापूर्वक वहाँ पहुँच गयीं।
यह दृश्य देख अकबर गंभीर स्वर में खानखाना से कहने लगाः
"राणा प्रताप ने तुम्हारे परिवार की बेगमों को यों ससम्मान पहुँचाकर तुम्हारी ही नहींपूरे मुगल खानदान की इज्जत को सम्मान दिया है। राणा प्रताप की महानता के आगे मेरा मस्तक झुका जा रहा है। राणा प्रताप जैसे उदार योद्धा को कोई गुलाम नहीं बना सकता।"

अमर शहीद गुरु तेगबहादुरजी




धर्मदेश के हित में जिसने पूरा जीवन लगा दिया।
इस दुनिया में उसी मनुज ने नर तन को सार्थक किया।।
हिन्दस्तान में औरंगजेब का शासनकाल था। किसी इतिहासकार ने लिखा हैः
'औरंगजेब ने यह हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियत न किया जाये तथा  हिन्दुओं पर जजिया (कर) लगा दिया जाय। उस समय अनेकों नये कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से अनेकों हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा-आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगे। मंदिर गिराये गये, मसजिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है कि 'सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था....'
उसी समय कश्मीर के कुछ पंडितों ने आकर गुरु तेगबहादुरजी से हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का वर्णन किया। तब गुरु तेगबहादुरजी का हृदय द्रवीभूत हो उठा और वे बोलेः
"जाओ, तुम लोग बादशाह से कहो कि हमारा पीर तेगबहादुर है। यदि वह मुसलमान हो जाये तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।"
पंडितों ने वैसा की किया जैसा कि श्री तेगबहादुरजी ने कहा था। तब बादशाह औरंगजेब ने तेगबहादुरजी को दिल्ली आने का बुलावा भेजा। जब उनके शिष्य मतिदास और दयाला औरंगजेब के पास पहुँचे तब औरंगजेब ने कहाः
"यदि तुम लोग इस्लाम धर्म कबूल नहीं करोगे तो कत्ल कर दिये जाओगे।"
मतिदासः "शरीर तो नश्वर है और आत्मा का कभी कत्ल नहीं हो सकता।"
तब औरंगजेब ने क्रोधित होकर मतिदास को आरे से चिरवा दिया। यह देखकर दयाला बोलाः
"औरंगजेब ! तूने बाबर वंश को और अपनी बादशाहियत को चिरवाया है।"
यह सुनकर औरंगजेब ने दयाला को जिंदा ही जला दिया।
औरंगजेब के अत्याचार का अंत नहीं आ रहा था। फिर गुरुतेगबहादुरजी स्वयं गये। उनसे भी औरंगजेब ने कहाः
"यदि तुम मुसलमान होना स्वीकार नहीं करोगे तो कल तुम्हारी भी यही दशा होगी।"
दूसरे दिन (मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को) बीच चौराहे पर तेगबहादुरजी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। धर्म के लिए एक संत कुर्बान हो गये। तेगबहादुरजी के बलिदान ने जनता में रोष पैदा कर दिया। अतः लोगों में बदला लेने की धुन सवार हो गयी। अनेकों शूरवीर धर्म के ऊपर न्योछावर होने को तैयार होने लगे। तेग बहादुरजी के बलिदान ने समय को ही बदल दिया। ऐसे शूरवीरों का, धर्मप्रेमियों का बलिदान ही भारत को दासता की जंजीरी से मुक्त करा सका है।
देश तो मुक्त हुआ किंतु क्या मानव की वास्तविक मुक्ति हुई? नहीं। विषय-विकार, ऐश-आराम और भोग-विलासरूपी दासता से अभी भी वह आबद्ध ही है और इस दासता से मुक्ति तभी मिल सकती है जब संत महापुरुषों की शरण में जाकर उनके बताये मार्ग पर चलकर मुक्ति पथ का पथिक बना जाय। तभी मानव-जीवन सार्थक हो सकेगा।
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धर्म के लिए बलिदान देने वाले चार अमर शहीद



धन्य है पंजाब की माटी जहाँ समय-समय पर अनेक महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ ! धर्म की पवित्र यज्ञवेदी में बलिदान देने वालों की परंपरा में गुरु गोविंदसिंह के चार लाडलों को, अमर शहीदों को भारत भूल सकता है? नहीं, कदापि नहीं। अपने पितामह गुरु तेगबहादुर की कुर्बानी और भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत पिता गुरु गोविन्दसिंह ही उनके आदर्श थे। तभी तो 8-10 वर्ष की छोटी सी अवस्था में उनकी वीरता र धर्मपरायणता को देखकर भारतवासी उनके लिए श्रद्धा से नतमस्तक हो उठते हैं।
गुरुगोविंदसिंह की बढ़ती हुई शक्ति और शूरता को देखकर औरंगजेब झुँझलाया हुआ था। उसने शाही फरमान निकाला कि 'पंजाब के सभी सूबों के हाकिम और सरदार तथा पहाड़ी राजा मिलकर आनंदपुर को बरबाद कर डालो और गुरु गोविंदसिंह को जिंदा गिरफ्तार करो या उनका सिर काटकर शाही दरबार में हाजिर करो।'
बस फिर क्या था? मुगल सेना द्वारा आनंदपुर पर आक्रमण कर दिया गया। आनंदपुर के किले में रहते हुए मुट्ठीभर सिक्ख सरदारों की सेना ने विशाल मुगल सेना को भी त्रस्त कर दिया। किंतु धीरे-धीरे रसद-सामान घटने लगा और सिक्ख सेना भूख से व्याकुल हो उठी। आखिरकार अपने साथियों के विचार से बाध्य होकर अनुकूल अवसर पाकर गुरुगोविंदसिंह ने आधी रात में सपरिवार किला छोड़ दिया।
.....किंतु न जाने कहाँ से यवनों को इसकी भनक मिल गयी और दोनों सेनाओं में हलचल मच गयी। इसी भागदौड़ में गुरु गोविन्दसिंह के परिवार वाले अलग होकर भटक गये। गुरु गोविंदसिंह की माता अपने दो छोटे-छोटे पौत्रों, जोरावरसिंह और फतेहसिंह के साथ दूसरी ओर निकल पड़ी। उनके साथ रहने वाले रसोइये के विश्वासघात के कारण ये लोग विपक्षियों द्वारा गिरफ्तार किये गये और सूबा सरहिंद के पास भेज दिये गये। सूबेदार ने गुरु गोविन्दसिंह के हृदय पर आघात पहुँचाने के ख्याल से उनके दोनों छोटे बच्चों को मुसलमान बनाने का निश्चय किया।
भरे दरबार में गुरु गोविन्दसिंह के इन दोनों पुत्रों से सूबेदार ने पूछाः "ऐ बच्चो ! तुम लोगों को दीन(मजहब) इस्लाम की गोद में आना मंजूर है या कत्ल होना?"
दो-तीन बार पूछने पर जोरावरसिंह ने जवाब दियाः
"हमें कत्ल होना मंजूर है।"
कैसी दिलेरी है ! कितनी निर्भीकता ! जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते रहते हैं, उस नन्हीं सी सुकुमार अवस्था में भी धर्म के प्रति इन बालकों की कितनी निष्ठा है !
वजीद खाँ बोलाः "बच्चो ! दीन इस्लाम में आकर सुख से जीवन व्यतीत करो। अभी तो तुम्हारा फलने-फूलने का समय है। मृत्यु से भी इस्लाम धर्म को बुरा समझते हो? जरा सोचो ! अपनी जिंदगी व्यर्थ क्यों गँवा रहे हो?"
गुरु गोविंदसिंह के लाडले वे वीर पुत्र... मानो गीता के इस ज्ञान को उन्होंने पूरी तरह आत्मसात् कर लिया थाः स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। जोरावरसिंह ने कहाः "हिन्दू धर्म से बढ़कर संसार में कोई धर्म नहीं। अपने धर्म पर अडिग रहकर मरने से बढ़कर सुख देने वाला दुनिया में कोई काम नहीं। अपने धर्म की मर्यादा पर मिटना तो हमारे कुल की रीति है। हम लोग स क्षणभंगुर जीवन की परवाह नहीं करते। मर-मिटकर भी धर्म की रक्षा करना ही हमारा अंतिम ध्येय है। चाहे तुम कत्ल करो या तुम्हारी जो इच्छा हो, करो।"
गुरु गोविन्दसिंह के पुत्र महान,
न छोड़ा धर्म हुए कुर्बान.........
इसी प्रकार फतेहसिंह ने भी धर्म को न त्यागकर बड़ी निर्भीकतापूर्वक मृत्यु का वरण श्रेयस्कर समझा। शाही सल्तनत आश्चर्यचकित हो उठी कि 'इस नन्हीं-सी आयु में भी अपने धर्म के प्रति कितनी अडिगता है ! इन नन्हें-नन्हें सुकुमार बालकों में कितनी निर्भीकता है !' किंतु अन्यायी शासक को भला यह कैसे सहन होता? काजियों और मुल्लाओं की राय से इन्हें जीते-जी दीवार में चिनवाने का फरमान जारी कर दिया गया।
कुछ ही दूरी पर दोनों भाई दीवार में चिने जाने लगे तब धर्मांध सूबेदार ने कहाः "ऐ बालको ! अभी भी चाहो तो तुम्हारे प्राण बच सकते हैं। तुम लोग कलमा पढ़कर मुसलमान धर्म स्वीकार कर लो। मैं तुम्हें नेक सलाह देता हूँ।"
यह सुनकर वीर जोरावरसिंह गरज उठाः "अरे अत्याचारी नराधम ! तू क्या बकता है? मुझे तो खुशी है कि पंचम गुरु अर्जुन देव और दादागुरु तेगबहादुर के आदर्शों को कायम करने के लिए मैं अपनी कुर्बानी दे रहा हूँ तेरे जैसे अत्याचारियों से यह धर्म मिटनेवाला नहीं, बल्कि हमारे खून से वह सींचा जा रहा है और आत्मा तो अगर है, इसे कौन मार सकता है?"
दीवार शरीर को ढकती हुई ऊपर बढ़ती जा रही थी। छोटे भाई फतेहसिंह की गर्दन तक दीवार आ गयी थी। वह पहले ही आँखों से ओझल हो जाने वाला था। यह देखकर जोरावरसिंह की आँखों में आँसू आ गये। सूबेदार को लगा कि अब मुलजिम मृत्यु से भयभीत हो रहा है। अतः मन ही मन प्रसन्न होकर बोलाः "जोरावर ! अब भी बता दो तुम्हारी क्या इच्छा है? रोने से क्या लाभ होगा?"
जोरावर सिंहः "मैं बड़ा अभागा हूँ कि अपने छोटे भाई से पहले मैंने जन्म धारण किया, माता का दूध और जन्मभूमि का अन्न जल ग्रहण किया, धर्म की शिक्षा पायी किंतु धर्म के निमित्त जीवन-दान देने का सौभाग्य मुझसे पहले मेरे छोटे भाई फतेह को प्राप्त हो रहा है। मुझसे पहले मेरा छोटा भाई कुर्बानी दे रहा है, इसीलिए मुझ आज खेद हो रहा है।"
लोग दंग रह गये कि कितने साहसी हैं ये बालक ! जो प्रलोभन दिये जाने और जुल्मियों द्वारा अत्याचार किये जाने पर भी वीरतापूर्वक स्वधर्म में डटे रहे।
उधर गुरु गोविंदसिंह की पूरी सेना युद्ध में काम आ गयी। यह देखकर उनके बड़े पुत्र अजीतसिंह से नहीं रहा गया और वे पिता के पास आकर बोल उठेः
"पिताजी ! जीते जी बंदी होना कायरता है और भागना बुजदिली है। इनसे अच्छा है लड़कर मरना। आप आज्ञा करें, मैं इन यवनों के छक्के छुड़ा दूँगा या मृत्यु का आलिंगन करूँगा।"
वीर पुत्र अजीतसिंह की बात सुनकर गोविंदसिंह का हृदय प्रसन्न हो उठा और वे बोलेः
"शाबाश ! धन्य हो पुत्र ! जाओ, स्वदेश और स्वधर्म के निमित्त अपना कर्तव्यपालन करो। हिन्दू धर्म को तुम्हारे जैसे वीर बालकों की कुर्बानी की आवश्यकता है।"
पिता से आज्ञा पाकर अत्यंत प्रसन्नता तथा जोश के साथ अजीतसिंह आठ-दस सिक्खों के साथ युद्ध स्थल में जा धमका और देखते ही देखते यवन सेना के बड़े-बड़े सरदारों को मौत के घाट उतारते हुए खुद भी शहीद हो गया।
ऐसे वीर बालकों की गाथा से ही भारतीय इतिहास अमर हो रहा है। अपने बड़े भाइयों को वीरगति प्राप्त करते देखकर उनसे छोटा भाई जुझारसिंह भला कैसे चुप बैठता? वह भी अपने पिता गुरु गोविंदसिंह के पास जा पहुँचा और बोलाः
"पिताजी ! बड़े भैया तो वीरगति को प्राप्त हो गये, इसलिए मुझे भी भैया का अनुगामी बनने की आज्ञा दीजिए।"
गुरु गोविन्दसिंह का हृदय भर आया और उन्होंने उठकर जुझार को गले लगा लिया। वे बोलेः "जाओ, बेटा ! तुम भी अमरपद प्राप्त करो, देवता तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।"
धन्य है पुत्र की वीरता और धन्य है पिता की कुर्बानी ! अपने तीन पुत्रों की मृत्यु के पश्चात् स्वदेश तथा स्वधर्म पालन के निमित्त अपने चौथे और अंतिम पुत्र को भी प्रसन्नता से धर्म और स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर चढ़ने के निमित्त स्वीकृति प्रदान कर दी !
वीर जुझारसिंह 'सत् श्री अकाल' कहकर उछल पड़ा। उसका रोम-रोम शत्रु को परास्त करने के लिए फड़कने लगा। स्वयं पिता ने उसे वीरों के देश से सुसज्जित करके आशीर्वाद दिया और वीर जुझार पिता को प्रणाम करके अपने कुछ सरदार साथियों के साथ निकल पड़ा युद्धभूमि की ओर। जिस ओर जुझार गया उस ओर दुश्मनों का तीव्रता से सफाया होने लगा और ऐसा लगता मानो महाकाल की लपलपाती जिह्वा सेनाओं को चाट रही है। देखते-देखते मैदान साफ हो गया। अंत में शत्रुओं से जूझते-जूझते वह वीर बालक भी मृत्यु की भेंट चढ़ गया। देखनेवाले दुश्मन भी उसकी प्रशंसा किये बिना न रह सके।
धन्य है यह देश ! धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने इन चार पुत्ररत्नों को जन्म दिया और धन्य हैं वे चारों वीर पुत्र जिन्होंने देश, धर्म और संस्कृति के रक्षणार्थ अपने प्राणों तक का उत्सर्ग कर दिया।
चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति हो अथवा चाहे कितनी भी बड़े-बड़े प्रलोभन आयें, किंतु वीर वही है जो अपने धर्म तथा देश की रक्षा के लिए उनकी परवाह न करते हुए अपने प्राणों की भी बाजी लगा दें। वही वास्तव में मनुष्य कहलाने योग्य है। किसी ने सच कहा हैः
जिसको नहीं निज देश पर निज जाति पर अभिमान है।
वह नर नहीं पर पशु निरा और मृतक समान है।।
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चन्द्रशेखर आजाद की दृढ़निष्ठा

महान देशभक्त, क्रांतिकारी, वीर चन्द्रशेखर आजाद बड़े ही दृढ़प्रतिज्ञ थे। उनके गले में यज्ञोपवीत, जेब में गीता और साथ में पिस्तौल रहा करती थी। वे ईश्वरपरायण, बहादुर, संयमी और सदाचारी थे।
एक बार वे अपने एक मित्र के घर ठहरे हुए थे। उनकी नवयुवती कन्या ने उन्हें कामजाल में फँसाना चाहा, आजाद ने डाँटकर कहाः 'इस बार तुम्हें क्षमा करता हूँ, भविष्य में ऐसा हुआ तो गोली से उड़ा दूँगा।'यह बात उन्होंने उसके पिता को भी बता दी और उनके यहाँ ठहरना तक बंद कर दिया।
जिन दिनों आजाद भूमिगत होकर मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष कर रहे थे, उन दिनों उनकी माँ जगरानी देवी अत्यन्त विपन्नावस्था में रह रही थीं। तन ढँकने को एक मोटी धोती तथा पेट भरने को दो रोटी व नमक भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। अड़ोस-पड़ोस के लोग भी उनकी मदद नहीं करते थे। उन्हें भय था कि अंग्रेज पुलिस आजाद को सहायता देने के संदेह में उनकी ताड़ना करेगी।
माँ की इस कष्टपूर्ण स्थिति का समाचार जब क्रांतिकारियों को मिला तो वे पीड़ा से तिलमिला उठे। एक क्रांतिकारी ने, जिसके पास संग्रहित धन रखा होता था, कुछ रुपये चन्द्रशेखर की माँ को भेज दिये। रुपये भेजने का समाचार जब आजाद को मिला तो वे क्रोधित हो गये और उस क्रांतिकारी की ओर पिस्तौल तानकर बोलेः 'गद्दार ! यह तूने क्या किया? यह पैसा मेरा नहीं है, राष्ट्र का है। संग्रहित धन का इस प्रकार अपव्यय कर तूने हमारी देशभक्ति को लांछित किया है। चन्द्रशेखर इसमें से एक पैसा भी व्यक्तिगत कार्यों में नहीं लगा सकता।' आजाद की यह अलौकिक प्रमाणिकता देखकर वह क्रांतिकारी दंग रह गया। अपराधी की भाँति वह नतमस्तक होकर खड़ा रहा। क्षणभर बाद आजाद पिस्तौल बगल में डालते हुए बोलेः
'आज तो छोड़ दिया, परंतु भविष्य में ऐसी भूल की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।'
देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले चन्द्रशेखर आजाद जैसे संयमी, सदाचारी देशभक्तों के पवित्र बलिदान से ही भारत अंग्रेजी शासन की दासता से मुक्त हो पाया है।

माथे पर तो भारत ही रहेगा

अपने ढाई वर्ष के अमरीकी प्रवास में स्वामी रामतीर्थ को भेंटस्वरूप जो प्रचुर धनराशि मिली थी, वह सब उन्होंने अन्य देशों के बुभुक्षितों के लिए समर्पित कर दी। उनके पास रह गयी केवल एक अमरीकी पोशाक। स्वामी राम ने अमरीका से वापस लौट आने के बाद एक वह पोशाक पहनी। कोट पैंट तो पहनने के बजाय उन्होंने कंधों से लटका लिये और अमरीकी जूते पाँव में डालकर खड़े हो गये, किंतु कीमती टोपी की जगह उन्होंने अपना सादा साफा ही सिर पर बाँधा।
जब उनसे पूछा गया कि 'इतना सुंदर हैट तो आपने पहना ही नहीं?' तो बड़ी मस्ती से उन्होंने जवाब दियाः 'राम के सिर माथे पर तो हमेशा महान भारत ही रहेगा, अलबत्ता अमरीका पाँवों में पड़ा रह सकता है....' इतना कह उन्होंने नीचे झुककर मातृभूमि की मिट्टी उठायी और उसे माथे पर लगा लिया।
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सफलता कैसे पायें......?

किसी ने कहा हैः
अगर तुम ठान लोतारे गगन के तोड़ सकते हो।
अगर तुम ठान लोतूफान का मुख मोड़ सकते हो।।
यह कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे मानव न कर सके। जीवन में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान न हो।
जीवन में संयम, सदाचार, प्रेम, सहिष्णुता, निर्भयता, पवित्रता, दृढ़ आत्मविश्वास और उत्तम संग हो तो विद्यार्थी के लिए अपना लक्ष्य प्राप्त करना आसान हो जाता है।
यदि विद्यार्थी बौद्धिक-विकास के कुछ प्रयोगों को समझ लें, जैसे कि सूर्य को अर्घ्य देना, भ्रामरी प्राणायाम करना, तुलसी के पत्तों का सेवन करना, त्राटक करना, सारस्वत्य मंत्र का जप करना आदि तो उनके लिए परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना आसान हो जायेगा।
विद्यार्थी को चाहिए कि रोज सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सबसे पहले अपने इष्ट का, गुरु का स्मरण करे। फिर स्नानादि करके अपने पूजाकक्ष में बैठकर गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा सारस्वत्य मंत्र का जाप करे। अपने गुरु या इष्ट की मूर्ति की ओर एकटक निहारते हुए त्राटक करे। अपने श्वासोच्छ्वास की गति पर ध्यान देते हुए मन को एकाग्र करे। भ्रामरी प्राणायाम करे जो 'विद्यार्थी सर्वांगीण उत्थान शिविर' में सिखाया जाता है।
प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य दे और तुलसी के 5-7 पत्तों को चबाकर 2-4 घूँट पानी पिये।
रात को देर तक न पढ़े वरन् सुबह जल्दी उठकर उपर्युक्त नियमों को करके अध्ययन करे तो इससे पढ़ा हुआ शीघ्र याद हो जाता है।
जब परीक्षा देने जाये तो तनाव-चिन्ता से युक्त होकर नहीं वरन् इष्ट-गुरु का स्मरण करके, प्रसन्न होकर जाय।
परीक्षा भवन में भी जब तक प्रश्नपत्र हाथ में नहीं आता तब तक शांत तथा स्वस्थ चित्त होकर प्रसन्नता को बनाये रखे।
प्रश्नपत्र हाथ में आने पर उसे एक बार पूरा पढ़ लेना चाहिए और जिस प्रश्न का उत्तर आता है उसे पहले लिखे। ऐसा नहीं कि जो नहीं आता उसे देखकर घबरा जाये। घबराने से जो प्रश्न आता है वह भी भूल जायेगा।
जो प्रश्न आते हैं उन्हें हल करने के बाद जो नहीं आते उनकी ओर ध्यान दे। अंदर दृढ़ विश्वास रखे कि मुझे ये भी आ जायेंगे। अंदर से निर्भय रहे और भगवत्स्मरण करके एकाध मिनट शांत हो जाय, फिर लिखना शुरु करे। धीरे-धीरे उन प्रश्नों के उत्तर भी मिल जायेंगे।
मुख्य बात यह है कि किसी भी कीमत पर धैर्य न खोये। निर्भयता तथा दृढ़ आत्मविश्वास बनाये रखे।
विद्यार्थियों को अपने जीवन को सदैव बुरे संग से बचाना चाहिए। न तो वह स्वयं धूम्रपान आदि करे न ही ऐसे मित्रों का संग करे। व्यसनों से मनुष्य की स्मरणशक्ति पर बड़ा खराब प्रभाव पड़ता है।
व्यसन की तरह चलचित्र भी विद्यार्थी की जीवनशक्ति को क्षीण कर देते हैं। आँखों की रोशनी को कम करने के साथ ही मन और दिमाग को भी कुप्रभावित करने वाले चलचित्रों से विद्यार्थियों को सदैव सावधान रहना चाहिए। आँखों के द्वारा बुरे दृश्य अंदर घुस जाते हैं और वे मन को भी कुपथ पर ले जाते हैं। इसकी अपेक्षा तो सत्संग में जाना, सत्शास्त्रों का अध्ययन करना अनंतगुना हितकारी है।
यदि विद्यार्थी ने अपना विद्यार्थी-जीवन सँभाल लिया तो उसका भावी जीवन भी सँभल जाता है, क्योंकि विद्यार्थी-जीवन ही भावी जीवन की आधारशिला है। विद्यार्थीकाल में वह जितना संयमी, सदाचारी, निर्भय और सहिष्णु होगा, बुरे संग तथा व्यसनों को त्यागकर सत्संग का आश्रय लेगा, प्राणायाम-आसनादि को सुचारू रूप से करेगा उतना ही उसका जीवन समुन्नत होगा। यदि नींव सुदृढ़ होती है तो उस पर बना विशाल भवन भी दृढ़ और स्थायी होता है। विद्यार्थीकाल मानवजीवन की नींव के समान है, अतः उसको सुदृढ़ बनाना चाहिए।
इन बातों को समझकर उन पर अमल किया जाये तो केवल लौकिक शिक्षा में ही सफलता प्राप्त होगी ऐसी बात नहीं है वरन् जीवन की हर परीक्षा में विद्यार्थी सफल हो सकता है।
हे विद्यार्थियो ! उठो... जागो... कमर कसो। दृढ़ता और निर्भयता से जुट पड़ो। बुरे संग तथा व्यसनों को त्यागकर, संतों-सदगुरुओं के मार्गदर्शन के अनुसार चल पड़ो... सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी।
धन्य है वे लोग जिनमें ये छः गुण हैं ! अंतर्यामी देव सदैव उनकी सहायता करते हैं-
उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धि शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत।।
'उद्योग, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम – ये छः गुण जिस व्यक्ति के जीवन में हैं, देव उसकी सहायता करते हैं।'
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विद्यार्थियों से दो बातें









जबसे भारत के विद्यार्थी 'गीता''गुरुवाणी''रामायण' की महिमा भूल गये, तबसे वे पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के शिकार बन गये। नहीं तो विदेश के विश्वविख्यात विद्वानों को भी चकित कर दे – ऐसा सामर्थ्य भारत के नन्हें-मुन्हें बच्चों में था।
आज का विद्यार्थी कल का नागरिक है। विद्यार्थी जैसा विचार करता है, देर सवेर वैसा ही बन जाता है। जो विद्यार्थी परीक्षा देते समय सोचता है कि 'मैं प्रश्नों को हल नहीं कर पाऊँगा... मैं पास नहीं हो पाऊँगा.... ' वह अनुत्तीण हो जाता और जो सोचता है कि मैं सारे प्रश्नों को हल कर लूँगा..... मैं पास हो जाऊँगा....' वह पास भी हो जाता है।
विद्यार्थी के अंदर कितनी अदभुत शक्तियाँ छिपी हुई हैं, इसका उसे पता नहीं है। जरूरत तो है उन शक्तियों को जगाने की। विद्यार्थी को कभी निर्बल विचार नहीं करना चाहिए।
वह कौन-सा उकदा है जो हो नहीं सकता? तेरा जी न चाहे तो हो नहीं सकता।
छोटा-सा कीड़ा पत्थर में घर करेइन्सान क्या दिले-दिलबर में घर न करे?
हे भारत के विद्यार्थियो !
अपने जीवन में हजार-हजार विघ्न आयें, हजार बाधाएँ आ जायें लेकिन एक उत्तम लक्ष्य बनाकर चलते जाओ। देर सवेर तुम्हारे लक्ष्य की सिद्धि होकर ही रहेगी। विघ्न और बाधाएँ तुम्हारी सुषुप्त चेतना को, सुषुप्त शक्तियों को जागृत करने के शुभ अवसर हैं।
कभी भी अपने आप को कोसो मत। हमेशा सफलता के विचार करो, प्रसन्नता के विचार करो, आरोग्यता के विचार करो। दृढ़ एवं पुरुषार्थी बनो और भारत के श्रेष्ठ नागरिक बनकर भारत की शान बढ़ाओ। ईश्वर एवं ईश्वरप्राप्त महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं...
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आप सोचिये :  अगर इस तरहां की कहानियां आज कल नही मिल पाती अगेर हम अपने बच्चो को ये कहानिया हमारे पथ्यं करम मे हो .तो इस मे मैं तनिक भी संदेह नहीं करसकता की मेरे देश मे भगत सिंह ,रना प्रताप, विवेकानंद जैसे वीर फिर हो सकते है . जो  अपने माता पिता और देश   और विदेश मे अपने माता पिता अपने कुल खान दान का नाम रोशान कर सकते है न की डिस्को डांस  करके.....

१७ शताब्दी  मे मेकाले जब भारत आया था तब उसने देखा की यहाँ के लोग इतने खुश कैसे है.उसने अध्यन किया और पाया की . इस के पीछे इन की सांस्कृतिक विरासत है .जो इन हे इनता खुश करती है .वीर योद्धाओ की कहानिया ....मकोले ने सोचा की अगर भारत को गुलाम करना है तो इनकी सांस्कृतिक विरासत को ख़तम करना होगा...वो   आज  पूरण रूप से हो रहाँ है   .
आज सब पाश्चात्य की और जा रहे है .....
लेकिन वो दिन भी दूर नहीं जब भारत पुनः विश्व गुरु के पद पैर असीं होगा .
      इस मे मैं तनिक भी संदेह नही कर सकता .
                अमरीका का राष्पति कहता है  .की  भारत जैसी शिक्षा प्रणाली अमेरिका मे भी होनी चाहिए.
वाईट  हाउस मे दिवाली मनाई गयी...
                    हमारे संत आश्रम जी बापू का डाक टिकट अमेरिका मे चल रहा  है .          भारत के संतो का सम्मान हर देश मे होता है .

मेरे चिट्ठे  का उद्देश्य किसी को अप्मानिक करना नही है .सच्चाई आप के सामने रखने का                     प्रयतन किया  है ..मेरा उद्देश्य है देश भागती .चाहे वो मुस्लमान हो या हिन्दू हो .
अब्दुल हामिद ने १९६५ मे टंक जला डाला .ये भी हिंदुस्तान का ही मुस्लमान ही था.


जय माँ भारती 

















2 comments:

  1. वाह!!!!!!! बहुत खूब...मेरे मित्र...विक्रांत सिंह जी...
    बहुत अच्छा और शानदार लेखन कार्य है आपका...
    आप हार्दिक शुभ-कामना के पात्र हैं...
    मन प्रसन्न कर दिया...
    युवाओं और विद्यार्थियों के लिए जो लिखा है वो प्रशंसनीय है...
    महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जी, तेग बहादुर सिंह जी और महान चंद्रशेखर "आज़ाद" के बारे में जो लिखा है,
    सत्य और सार्थक है...
    आप एक सच्चे राजपूत और देश भक्त हैं....
    वन्दे-मातरम्...
    जय हिंद...जय भारत....

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  2. bas aap jaise desh bhagto se jindgi mey milte rahe..

    kahin mujhe sharminda na hona pade,
    mere khun per ye aljam na aye ,
    maa kahen mera beta waqt per kam na aye.

    jai maa bharti

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