cont-: vikrantchauhan73@yahoo.com
-: http://www.kanwarvikrantsingh.blogspot.com/ -:
जो द्रढ़ राखे धर्म को तिही राखे करतार,
या कुल की रित है जानत है संसार ॥
राजपूतो के बिना इतिहास खाली है। वो बहादुरी की मिसाल खाली है।
राजपूतो ने इस धरती माँ को लहू से सींचा है।
इसीलिए कुरुक्षेत्र की धरती पर आज भी लाली है .
एक चिंघाड़ की याद कराता हूँ
आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण तलवार के बारे में बताता हूँ
ये तो युगों से स्वामीभक्ति करती रही अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती रही
ये ही तो राजपूतो आओ मित्रवर मेरी बात सुनो का असली अलंकार हैं से तो शुरू राजपूतो का संसार है इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है .
इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है .जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते तो तलवार को क्यों छोड़ दिया बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है
ताज दिलाये इसी ने दिलाया अनाज भी जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर उसकी आह को भी रोक दिया
जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू .
कँवर विक्रांत सिंह
vikrantchauhan73@yahoo.com cont-: 09540549049
-: http://www.kanwarvikrantsingh.blogspot.com/ -:
जो द्रढ़ राखे धर्म को तिही राखे करतार,
या कुल की रित है जानत है संसार ॥
राजपूतो के बिना इतिहास खाली है। वो बहादुरी की मिसाल खाली है।
राजपूतो ने इस धरती माँ को लहू से सींचा है।
इसीलिए कुरुक्षेत्र की धरती पर आज भी लाली है .
जय राजपूताना
एक चिंघाड़ की याद कराता हूँ
आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण तलवार के बारे में बताता हूँ
ये तो युगों से स्वामीभक्ति करती रही अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती रही
ये ही तो राजपूतो आओ मित्रवर मेरी बात सुनो का असली अलंकार हैं से तो शुरू राजपूतो का संसार है इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है .
इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है .जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते तो तलवार को क्यों छोड़ दिया बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है
ताज दिलाये इसी ने दिलाया अनाज भी जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर उसकी आह को भी रोक दिया
जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू .
कँवर विक्रांत सिंह
vikrantchauhan73@yahoo.com cont-: 09540549049
jay rajputana
ReplyDeletejay matadi