Thursday, December 29, 2011

इंटर नेट पर गलत तस्वीर घूम रही है... उसे हटायें और शहीदों का सम्मान करें.....





यही है झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की असली तस्वीर-




विडियो देखें-





Monday, December 26, 2011

बंगलादेशी घुसपैठियों को हां , पाकिस्तानी हिन्दुओं को ना !..

पाकिस्तान से करीब दो सौ हिंदू परिवार वहाँ हो रहे रोज रोज अत्याचारों से तंग आकर भारत मे शरण की मांग कर रहे है ..ये लोग दिल्ली के ‘मजनू का टीला ” मे खुले असमान के नीचे अपना डेरा जमाए है ..लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उनका आवेदन ठुकराते हुए उन्हें एक सप्ताह के अंदर भारत छोड़ने का हुक्म सुना दिया ..
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पाकिस्तान मे तालिबान और वहाँ के स्थानीय गुंडे पाकिस्तानी प्रशासन की सहायता से हिन्दुओ का कत्ल , बलात्कार , अपहरण , जजिया कर , आदि जैसे अत्याचार वहाँ रोज करते है ..पकिस्तान मे हिन्दुओ (सिख समुदाय सहित ) को वोट देने का अधिकार नहीं है और उन्हें वहाँ दूसरे दर्जे की नागरिकता मिली हुयी है .इसलिए ये अपनी आवाज बुलंद भी नहीं कर सकते ..



ये बेचारे ये सोचकर भारत सरकार से शरण की मांग कर रहे थे कि भारत सरकार इनकी भावनाओ की कद्र करेगी .लेकिन इन बेचारोको ये नहीं मालूम था की भारत मे जो कांग्रेस की सरकार है वो हिन्दुओ के लिए तालिबान से भी ज्यादा क्रूर है .नहीं तो रात को दो बजे राजबाला को मीडिया के कैमरे के सामने लाठियो से पीट पीट कर हत्या नहीं की जाती ..उसे १२३ दिन कोमा मे रहने के वावजूद सरकार या कांग्रेस का कोई भी नुमाइंदा उसका हाल चाल लेने तक नही गया ..



लेकिन सवाल ये है कि अगर बांग्लादेश से करोडो मुसलमान भारत आकर बस सकते है तो फिर पाकिस्तान से दो सौ हिंदू क्यों नहीं ?? असल मे कांग्रेस अपना वोटबैक का नफा नुकसान समझकर ही विदेशियो को भारत मे शरण देती है ..कांग्रेस को लगता है कि बंगलादेशी मुसलमान उसके लिए वोट बैंक बन सकते है ..आसाम के चुनावो मे अब बंगलादेशी मुसलमान ही हार और जीत तय करते है ..कांग्रेस को लगता है कि हिंदू उसके लिए वोट बैंक नहीं है .



आप दिल्ली की सीलमपुर , सीमापुरी . मुंबई की धारावी .कोलकाता आदि जगहों के झोपड़पट्टी मे ९०% बंगलादेशी रहते है ..इनलोगों ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओ से मिलकर अपना नाम निर्वाचन सूची मे डलवा दिया है और इनको कांग्रेस अपना बड़ा वोट बैंक मानती है ..



भारत के शरण और आव्रजन कानून के मुताबिक भारत हिन्दुओ को शरण देने के लिए बाध्य है--



अंग्रेजो ने भारत से करोडो हिन्दुओ को गन्ने की खेती करने के लिए मारीशस , गुयाना , डच और फ्रेंच गुयाना , सूरीनाम , त्रिनिदाद ,टोबैगो .फिजी , वेस्टइंडीज, बहसूमा, इंडोनेशिया, सेसल्स , और पेसिफिक के कई छोटे छोटे द्वीप पर लेकर गए ..उन्होंने उनके साथ एक एग्रीमेंट किया था कि अगर उनके आने वाली पीढियां भारत मे आकर बसना चाहेगी तो भारत सरकार उनको अपना नागरिक मानकर उन्हें बसाएगी ..फिर बाद मे अंग्रेजो ने दूसरे हर देश के हिंदू और सिक्खो के लिए इस कानून का फैलाव कर दिया …युगांडा मे जब ईदी अमिन के जुल्मो से तंग आकर वहाँ कई पीढियो से बसे लाखो गुजरातियो को इसी कानून के तहत वापस भारत मे बसाया गया ..



आज़ादी के बाद जब सरदार पटेल भारत के गृह मंत्री बने तो उन्होंने इस कानून को और कड़ा कर दिया ..उन्होंने कहा कि भारत सरकार का सिर्फ ये क़ानूनी जबाबदारी नहीं बल्कि ये भारत सरकार की नैतिक जबाबदारी बनती है कि दुनिया के किसी भी देश मे यदि हिन्दुओ और सिखों पर अत्याचार हों तो भारत सरकार इसके खिलाफ पुरजोर आवाज उठाये ..



कांग्रेस की नरसिंहराव सरकार जो कांग्रेस की पहली ऐसी सरकार थी जो गाँधी परिवार की काली और गन्दी छाया से दूर रहकर निर्भीकता से अपना कार्यकाल पूरा किया .और कई क्रान्तिकारी बदलाव इस देश मे किया . इसी सरकार ने सबसे पहले इजरायल को मान्यता देते हुए इजरायल से कूटनीतिक संबंध स्थापित किये …इसी सरकार के समय मे जब फिजी मे महेंद्र चौधरी की सरकार को वहा की सेना ने हटा दिया और हिन्दुओ पर जुल्म करने लगी तो भारत सरकार ने वहाँ से हिन्दुओ को भारत लाने की वयस्था की और उनको भारत मे बसाया गया ..खुद महेद्र चौधरी ने अपना एक घर गुणगांव मे बनवाया ..



लेकिन आज की कांग्रेस सरकार के उपर घोर हिंदू विरोधी मानसिकता हावी है तभी तो कानूनों को ताक पर रख कर विदेश मंत्रायल मे पाकिस्तानी हिन्दुओ और सिक्खो को भारत से जाने का फरमान सुनाया है ..




Friday, December 16, 2011

आइये जाने कौन सी खबरे मिडिया ने कांग्रेस से "हाजमोला " लेकर पचा ले गई--

 




१- सोनिया गाँधी ने जब साम्प्रदायिक हिंसा निवारण बिल बनाया तो ये खुलेआम भारत के संविधान के मूल भावना और भारत मे साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ाना और दो समुदाओ के बीच और वैमनस्यता फैलाना था ..सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गाँधी ने खिलाफ इस बारे मे कुल २० कड़ी धाराओ मे एफ आई आर लिखवाई ..पहले तो चितंबरम के ईशारे पर दिल्ली पुलिस ने सोनिया गाँधी के खिलाफ नामजद एफ आई आर लिखने से मना कर दिया ..लेकिन जब स्वामी सुप्रीम कोर्ट गए और कोर्ट ने जब पूरा बिल पढ़ा तो सोनिया और उनकी पूरी मण्डली के खिलाफ कई धाराओ का उलंघन करने का एफ आई आर दर्ज करने का आदेश दिल्ली पुलिस की क्राईम ब्रांच को आदेश दिया 


ये खबर सभी चैनेल कांग्र्रेस से "हाजमोला " लेकर पचा लिए ..लेकिन बाद मे सिर्फ भास्कर ने छापा 


२- राहुल गाँधी पर सुकन्या के अपहरण और बलात्कार की खबर को सभी चैनेल पचा ले गए ..


३- कृपाशंकर सिंह के बेटे के अकाउंट मे १०० करोड रूपये ट्रान्सफर हुए फिर वो राबर्ट के एकाउंट मे गए ..ये भी खबर नहीं बनी ..


४- पिछले साल जब केरल मे सबरीमाला मंदिर मे भगदड़ मे करीब २०० हिंदू श्रधालु मारे गए तो राहुल गाँधी उस जगह से सिर्फ १० किलोमीटर ही दूर थे ..वो सुमन दूबे की बेटी की शादी मे थे ..उनको खबर दी गयी ..उनके साथ केरल कांग्रेस के कई नेता भी थे उन्होंने राहुल गाँधी से घटना स्थल पर जाने की अपील की ..लेकिन राहुल गाँधी अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती मे डूबे रहे ..यहाँ तक कई कांग्रेसी नेताओ ने खुलेआम राहुल गाँधी के इस वर्ताव की निंदा की ..


इस खबर को भी मीडिया "हाजमोला " खाकर पचा गयी ..


५- २ जी घोटाले के कुछ समय बाद राबर्ट बढेरा ने देश की रियल स्टेट की सबसे बड़ी कम्पनी डीएलएफ मे २३% हिस्सेदारी खरीदी ..और राबर्ट वढेरा के संपत्ति मे हर रोज करीब तीन करोड की वृद्धि को भी मीडिया पचा गयी .


एक दिन स्टार न्यूज़ ने एक खबर दिखाई थी "राबर्ट का साम्राज्य " लेकिन इसे बीच मे ही बंद कर दिया गया ..और जैसे दूसरे खबर कई बार दिखाए जाते है .ये खबर कभी नहीं दिखाई गयी ..


६- अभी कुछ दिन पहले ही उतराखण्ड मे मुख्यमंत्री खंडूरी ने सोनिया को रेल प्रोजेक्ट का शिलान्यास करने पर गिरफ्तार करने की चेतावनी दी थी ..बाद मे प्रधानमंत्री ने संविधान और प्रोटोकाल के हनन पर सोनिया को एरपोर्ट से वापस बुला लिया था ..
ये खबर भी हमारी मिडिया पचा ले गयी ..एक हप्ते बाद भास्कर ने इसे छापा ..


९- सोनिया गाँधी ने अपने निजी विदेश यात्रा पर १८५० करोड रूपये खर्च किये ..ये जानकारी खुद सरकार ने एक आर टी आई के जबाब मे दी है ..लेकिन ये भी किसी मिडिया की खबर नहीं बनी ..


१० - सोनिया गाँधी के चारो और जो धुर हिंदू विरोधी जमे है जैसे उनके निजी सचिब विसेंट जार्ज ..राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ,,उनके दामाद राबर्ट वढेरा ..उनके कार्यक्रम के कन्वीनर आस्कर फर्नांडीस.. इनके बारे मे मीडिया कभी नहीं बताती .आखिर १०० करोड हिंदू आबादी वाले देश मे सोनिया गाँधी को कोई हिंदू नहीं मिलता ??


मित्रों ..आखिर किसी के आवाज को तो कांग्रेस दबा सकती है लेकिन हमारे गुस्से और हमारे भावनायो को नहीं ...
आपातकाल मे भी हमारे उपर हर तरह के प्रतिबन्ध थोपे गए लेकिन क्या हुआ ?? हमारा गुस्सा और बढता गया ....



Thursday, December 15, 2011

कश्मीर भारत में सिर्फ सेना को दिए गए विशेष अधिकारों (AFSPA ) के कारण है ...

इस सपोले को देखो जरा... फिर इसकी खाला छाती पीटेंगी "ओये अमारा मासूम बचा जरा बार, केलने को गयी , ये इंडियन आर्मी उसका बी एन्कोउन्टर कर दिया. ये आर्मी को मोमद साब दोजक की आग में जलाएगी"--
 अबे जेहाद की अमानत, तेरी खाला को जिन्नात उठा ले जाएं. तेरे अब्बू ने इनकम टैक्स के "आई" का नाम सुना है जो अपने बाप का माल समझ के फूंक दी??






 





कश्मीर में जब भारतीय जवान उन देशद्रोहियों के चंगुल में फंसता है तो उसका ये हाल करते हैं...


ये हाल है कश्मीर का... और कुछ देशद्रोही AFSPA समाप्त करवाना चाहते हैं... बाहर के दुश्मनों की दुश्मनी तो झेल ही रहे हैं... घर के गद्दारों का सर पहले काटा जाना चाहिए...
 


कश्मीर भारत में सिर्फ सेना को दिए गए विशेष अधिकारों (AFSPA ) के कारण है ...


AFSPA का विरोध करने वालो का विरोध करो...

वन्दे मातरम्...


जय हिंद... जय भारत...

Monday, December 12, 2011

सबसे श्रेष्ठ संपत्तिः चरित्र.........

सबसे श्रेष्ठ संपत्तिः चरित्र


चरित्र मानव की श्रेष्ठ संपत्ति है, दुनिया की समस्त संपदाओं में महान संपदा है। पंचभूतों से निर्मित मानव-शरीर की मृत्यु के बाद, पंचमहाभूतों में विलीन होने के बाद भी जिसका अस्तित्व बना रहता है, वह है उसका चरित्र।



चरित्रवान व्यक्ति ही समाज, राष्ट्र व विश्वसमुदाय का सही नेतृत्व और मार्गदर्शन कर सकता है। आज जनता को दुनियावी सुख-भोग व सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी चरित्र की। अपने सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी की चरित्र की। अपने चरित्र व सत्कर्मों से ही मानव चिर आदरणीय और पूजनीय हो जाता है।



स्वामी शिवानंद कहा करते थेः



"मनुष्य जीवन का सारांश है चरित्र। मनुष्य का चरित्रमात्र ही सदा जीवित रहता है। चरित्र का अर्जन नहीं किया गया तो ज्ञान का अर्जन भी किया जा सकता। अतः निष्कलंक चरित्र का निर्माण करें।"



अपने अलौकिक चरित्र के कारण ही आद्य शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, पूज्य लीलाशाह जी बापू जैसे महापुरुष आज भी याद किये जाते हैं।



व्यक्तित्व का निर्माण चरित्र से ही होता है। बाह्य रूप से व्यक्ति कितना ही सुन्दर क्यों न हो, कितना ही निपुण गायक क्यों न हो, बड़े-से-बड़ा कवि या वैज्ञानिक क्यों न हो, पर यदि वह चरित्रवान न हुआ तो समाज में उसके लिए सम्मानित स्थान का सदा अभाव ही रहेगा। चरित्रहीन व्यक्ति आत्मसंतोष और आत्मसुख से वंचित रहता है। आत्मग्लानि व अशांति देर-सवेर चरित्रहीन व्यक्ति का पीछा करती ही है। चरित्रवान व्यक्ति के आस-पास आत्मसंतोष, आत्मशांति और सम्मान वैसे ही मंडराते हैं. जैसे कमल के इर्द-गिर्द भौंरे, मधु के इर्द-गिर्द मधुमक्खी व सरोवर के इर्द-गिर्द पानी के प्यासे।



चरित्र एक शक्तिशाली उपकरण है जो शांति, धैर्य, स्नेह, प्रेम, सरलता, नम्रता आदि दैवी गुणों को निखारता है। यह उस पुष्प की भाँति है जो अपना सौरभ सुदूर देशों तक फैलाता है। महान विचार तथा उज्जवल चरित्र वाले व्यक्ति का ओज चुंबक की भाँति प्रभावशाली होता है।



भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर सम्पूर्ण मानव-समुदाय को उत्तम चरित्र-निर्माण के लिए श्रीमद् भगवद् गीता के सोलहवें अध्याय में दैवी गुणों का उपदेश किया है, जो मानवमात्र के लिए प्रेरणास्रोत हैं, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म अथवा संप्रदाय का हो। उन दैवी गुणों को प्रयत्नपूर्वक अपने आचरण में लाकर कोई भी व्यक्ति महान बन सकता है।



निष्कलंक चरित्र निर्माण के लिए नम्रता, अहिंसा, क्षमाशीलता, गुरुसेवा, शुचिता, आत्मसंयम, विषयों के प्रति अनासक्ति, निरहंकारिता, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि तथा दुःखों के प्रति अंतर्दृष्टि, निर्भयता, स्वच्छता, दानशीलता, स्वाध्याय, तपस्या, त्याग-परायणता, अलोलुपता, ईर्ष्या, अभिमान, कुटिलता व क्रोध का अभाव तथा शाँति और शौर्य जैसे गुण विकसित करने चाहिए।



कार्य करने पर एक प्रकार की आदत का भाव उदय होता है। आदत का बीज बोने से चरित्र का उदय और चरित्र का बीज बोने से भाग्य का उदय होता है। वर्तमान कर्मों से ही भाग्य बनता है, इसलिए सत्कर्म करने की आदत बना लें।



चित्त में विचार, अनुभव और कर्म से संस्कार मुद्रित होते हैं। व्यक्ति जो भी सोचता तथा कर्म करता है, वह सब यहाँ अमिट रूप से मुद्रित हो जाता है। व्यक्ति के मरणोपरांत भी ये संस्कार जीवित रहते हैं। इनके कारण ही मनुष्य संसार में बार-बार जन्मता-मरता रहता है।



दुश्चरित्र व्यक्ति सदा के लिए दुश्चरित्र हो गया – यह तर्क उचित नहीं है। अपने बुरे चरित्र व विचारों को बदलने की शक्ति प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है। आम्रपाली वेश्या, मुगला डाकू, बिल्वमंगल, वेमना योगी, और भी कई नाम लिये जा सकते हैं। एक वेश्या के चँगुल में फँसे व्यक्ति बिल्वमंगल से संत सूरदास हो गये। पत्नी के प्रेम में दीवाने थे लेकिन पत्नी ने विवेक के दो शब्द सुनाये तो वे ही संत तुलसीदास हो गये। आम्रपाली वेश्या भगवान बुद्ध की परम भक्तिन बन कर सन्मार्ग पर चल पड़ी।



बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आज।



यदि बुरे विचारों और बुरी भावनाओं का स्थान अच्छे विचारों और आदर्शों को दिया जाए तो मनुष्य सदगुणों के मार्ग में प्रगति कर सकता है। असत्यभाषी सत्यभाषी बन सकता है, दुष्चरित्र सच्चरित्र में परिवर्तित हो सकता है, डाकू एक नेक इन्सान ही नहीं ऋषि भी बन सकता है। व्यक्ति की आदतों, गुणों और आचारों की प्रतिपक्षी भावना (विरोधी गुणों की भावना) से बदला जा सकता है। सतत अभ्यास से अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है। दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस से जो व्यक्ति उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता है, सफलता तो उसके चरण चूमती है।



चरित्र-निर्माण का अर्थ होता है आदतों का निर्माण। आदत को बदलने से चरित्र भी बदल जाता है। संकल्प, रूचि, ध्यान तथा श्रद्धा से स्वभाव में किसी भी क्षण परिवर्तन किया जा सकता है। योगाभ्यास द्वारा भी मनुष्य अपनी पुरानी क्षुद्र आदतों को त्याग कर नवीन कल्याणकारी आदतों को ग्रहण कर सकता है।



आज का भारतवासी अपनी बुरी आदतें बदलकर अच्छा इन्सान बनना तो दूर रहा, प्रत्युत पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करते हुए और ज्यादा बुरी आदतों का शिकार बनता जा रहा है, जो राष्ट्र के सामाजिक व नैतिक पतन का हेतु है।



जिस राष्ट्र में पहले राजा-महाराजा भी जीवन का वास्तविक रहस्य जानने के लिए, ईश्वरीय सुख प्राप्त करने के लिए राज-पाट, भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर ब्रह्मज्ञानी संतों की खोज करते थे, वहीं विषय-वासना व पाश्चात्य चकाचौंध पर लट्टू होकर कई भारतवासी अपना पतन आप आमंत्रित कर रहे हैं।



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सफलता की कुंजी

साधक के जीवन में, मनुष्य मात्र के जीवन में अपने लक्ष्य की स्मृति और तत्परता होनी ही चाहिए। जो काम जिस समय करना चाहिए कर ही लेना चाहिए। संयम और तत्परता सफलता की कुंजी है। लापरवाही और संयम का अनादर विनाश का कारण है। जिस काम को करें, उसे ईश्वर का कार्य मान कर साधना का अंग बना लें। उस काम में से ही ईश्वर की मस्ती का आनंद आने लग जायेगा।



दो किसान थे। दोनों ने अपने-अपने बगीचे में पौधे लगाये। एक किसान ने बड़ी तत्परता से और ख्याल रखकर सिंचाई की, खाद पानी इत्यादि दिया। कुछ ही समय में उसका बगीचा सुंदर नंदनवन बन गया। दूर-दूर से लोग उसके बगीचे में आने लगे और खूब कमाई होने लगी।



दूसरे किसान ने भी पौधे तो लगाये थे लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया, लापरवाही की, अनियमित खाद-पानी दिये। लापरवाही की तो उसको परिणाम वह नहीं मिला। उसका बगीचा उजाड़ सा दिखता था।



अब पहले किसान को तो खूब यश मिलने लगा, लोग उसको सराहने लगे। दूसरा किसान अपने भाग्य को कोसने लगा, भगवान को दोषी ठहराने लगा। अरे भाई ! भगवान ने सूर्य कि किरणें और वृष्टि तो दोनों के लिए बराबर दी थी, दोनों के पास साधन थे, लेकिन दूसरे किसान में कमी थी तत्परता व सजगता की, अतः उसे वह परिणाम नहीं मिल पाया।



पहले किसान का तत्पर व सजग होना ही उसकी सफलता का कारण था और दूसरे किसान की लापरवाही ही उसकी विफलता का कारण थी। अब जिसको यश मिल रहा है वह बुद्धिमान किसान कहता है कि 'यह सब भगवान की लीला है' और दूसरा भगवान को दोषी ठहराता है। पहला किसान तत्परता व सजगता से काम करता है और भगवान की स्मृति रखता है। तत्परता व सजगता से काम करने वाला व्यक्ति कभी विफल नहीं होता और कभी विफल हो भी जाता है तो विफलता का कारण खोजता है। विफलता का कारण ईश्वर और प्रकृति नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति अपनी बेवकूफी निकालते हैं और तत्परता तथा सजगता से कार्य करते हैं।



एक होता है आलस्य और दूसरा होता है प्रमाद। पति जाते-जाते पत्नी को कह गयाः "मैं जा रहा हूँ। फैक्टरी में ये-ये काम हैं। मैनेजर को बता देना।" दो दिन बाद पति आया और पत्नी से पूछाः "फैक्टरी का काम कहाँ तक पहुँचा?"



पत्नी बोलीः "मेरे तो ध्यान में ही नहीं रहा।"



यह आलस्य नहीं है, प्रमाद है। किसी ने कुछ कार्य कहा कि इतना कार्य कर देना। बोलेः "अच्छा, होगा तो देखते हैं।" ऐसा कहते हुए काम भटक गया। यह है आलस्य।



आलस कबहुँ न कीजिए, आलस अरि सम जानि।



आलस से विद्या घटे, सुख-सम्पत्ति की हानि।।



आलस्य और प्रमाद मनुष्य की योग्याताओं के शत्रु हैं। अपनी योग्यता विकसित करने के लिए भी तत्परता से कार्य करना चाहिए। जिसकी कम समय में सुन्दर, सुचारू व अधिक-से-अधिक कार्य करने की कला विकसित है, वह आध्यात्मिक जगत में जाता है तो वहाँ भी सफल हो जायगा और लौकिक जगत में भी। लेकिन समय बरबाद करने वाला, टालमटोल करने वाला तो व्यवहार में भी विफल रहता है और परमार्थ में तो सफल हो ही नहीं सकता।



लापरवाह, पलायनवादी लोगों को सुख सुविधा और भजन का स्थान भी मिल जाय लेकिन यदि कार्य करने में तत्परता नहीं है, ईश्वर में प्रीति नहीं है, जप में प्रीति नहीं है तो ऐसे व्यक्ति को ब्रह्माजी भी आकर सुखी करना चाहें तो सुखी नहीं कर सकते। ऐसा व्यक्ति दुःखी ही रहेगा। कभी-कभी दैवयोग से उसे सुख मिलेगा तो आसक्त हो जायेगा और दुःख मिलेगा तो बोलेगाः "क्या करें? जमाना ऐसा है।" ऐसा करकर वह फरियाद ही करेगा।



काम-क्रोध तो मनुष्य के वैरी हैं ही, परंतु लापरवाही, आलस्य, प्रमाद – ये मनुष्य की योग्याओं के वैरी हैं।



अदृढ़ं हतं ज्ञानम्।



'भागवत' में आता है कि आत्मज्ञान अगर अदृढ़ है तो मरते समय रक्षा नहीं करता।



प्रमादे हतं श्रुतम्।



प्रमाद से जो सुना है उसका फल और सुनने का लाभ बिखर जाता है। जब सुनते हैं तब तत्परता से सुनें। कोई वाक्य या शब्द छूट न जाय।



संदिग्धो हतो मंत्रः व्यग्रचित्तो हतो जपः।



मंत्र में संदेह हो कि 'मेरा यह मंत्र सही है कि नहीं? बढ़िया है कि नहीं?' तुमने जप किया और फिर संदेह किया तो केवल जप के प्रभाव से थोड़ा बहुत लाभ तो होगा लेकिन पूर्ण लाभ तो निःसंदेह होकर जप करने वाले को हो ही होगा। जप तो किया लेकिन व्यग्रचित्त होकर बंदर-छाप जप किया तो उसका फल क्षीण हो जाता है। अन्यथा एकाग्रता और तत्परतापूर्वक जप से बहुत लाभ होता है। समर्थ रामदास ने तत्परता से जप कर साकार भगवान को प्रकट कर दिया था। मीरा ने जप से बहुत ऊँचाई पायी थी। तुलसीदास जी ने जप से ही कवित्व शक्ति विकसित की थी।



जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः।



जब तक लापरवाही है, तत्परता नहीं है तो लाख मंत्र जपो, क्या हो जायेगा? संयम और तत्परता से छोटे-से-छोटे व्यक्ति को महान बना देती है और संयम का त्याग करके विलासिता और लापरवाही पतन करा देती है। जहाँ विलास होगा, वहाँ लापरवाही आ जायेगी। पापकर्म, बुरी आदतें लापरवाही ले आते हैं, आपकी योग्यताओं को नष्ट कर देते है और तत्परता को हड़प लेते हैं।



किसी देश पर शत्रुओं ने आक्रमण की तैयारी की। गुप्तचरों द्वारा राजा को समाचार पहुँचाया गया कि शत्रुदेश द्वारा सीमा पर ऐसी-ऐसी तैयारियाँ हो रही हैं। राजा ने मुख्य सेनापति के लिए संदेशवाहक द्वारा पत्र भेजा। संदेशवाहक की घोड़ी के पैर की नाल में से एक कील निकल गयी थी। उसने सोचाः 'एक कील ही तो निकल गयी है, कभी ठुकवा लेंगे।' उसने थोड़ी लापरवाही की। जब संदेशा लेकर जा रहा था तो उस घोड़ी के पैर की नाल निकल पड़ी। घोड़ी गिर गयी। सैनिक मर गया। संदेश न पहुँच पाने के कारण दुश्मनों ने आक्रमण कर दिया और देश हार गया।



कील न ठुकवायी.... घोड़ी गिरी.... सैनिक मरा.... देश हारा।



एक छोटी सी कील न लगवाने की लापरवाही के कारण पूरा देश हार गया। अगर उसने उसी समय तत्पर होकर कील लगवायी होती तो ऐसा न होता। अतः जो काम जब करना चाहिए, कर ही लेना चाहिए। समय बरबाद नहीं करना चाहिए।



आजकल ऑफिसों में क्या हो रहा है? काम में टालमटोल। इंतजार करवाते हैं। वेतन पूरा चाहिए लेकिन काम बिगड़ता है। देश की व मानव-जाति की हानि हो रही है। सब एक-दूसरे के जिम्मे छोड़ते हैं। बड़ी बुरी हालत हो रही है हमारे देश की जबकि जापान आगे आ रहा है, क्योंकि वहाँ तत्परता है। इसीलिए इतनी तेजी से विकसित हो गया।



महाराज ! जो व्यवहार में तत्पर नहीं है और अपना कर्तव्य नहीं पालता, वह अगर साधु भी बन जायेगा तो क्या करेगा? पलायनवादी आदमी जहाँ भी जायेगा, देश और समाज के लिए बोझा ही है। जहाँ भी जायेगा, सिर खपायेगा।



भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव, सात्यकि, कृतवर्मा से चर्चा करते-करते पूछाः "मैं तुम्हें पाँच मूर्खों, पलायनवादियों के साथ स्वर्ग में भेजूँ यह पसंद करोगे कि पाँच बुद्धिमानों के साथ नरक में भेजूँ यह पसंद करोगे?"



उन्होंने कहाः "प्रभु ! आप कैसा प्रश्न पूछते हैं? पाँच पलायनवादी-लापरवाही अगर स्वर्ग में भी जायेंगे तो स्वर्ग की व्यवस्था ही बिगड़ जायेगी और अगर पाँच बुद्धिमान व तत्पर व्यक्ति नरक में जायेंगे तो कार्यकुशलता और योग्यता से नरक का नक्शा ही बदल जायेगा, उसको स्वर्ग बना देंगे।"



पलायनवादी, लापरवाही व्यक्ति घर-दुकान, दफ्तर और आश्रम, जहाँ भी जायेगा देर-सवेर असफल हो जायेगा। कर्म के पीछे भाग्य बनता है, हाथ की रेखाएँ बदल जाती हैं, प्रारब्ध बदल जाता है। सुविधा पूरी चाहिए लेकिन जिम्मेदारी नहीं, इससे लापरवाह व्यक्ति खोखला हो जाता है। जो तत्परता से काम नहीं करता, उसे कुदरत दुबारा मनुष्य-शरीर नहीं देती। कई लोग अपने-आप काम करते हैं, कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनसे काम लिया जाता है लेकिन तत्पर व्यक्ति को कहना नहीं पड़ता। वह स्वयं कार्य करता है। समझ बदलेगी तब व्यक्ति बदलेगा और व्यक्ति बदलेगा तब समाज और देश बदलेगा।



जो मनुष्य-जन्म में काम कतराता है, वह पेड़ पौधा पशु बन जाता। फिर उससे डंडे मार-मार कर, कुल्हाड़े मारकर काम लिया जाता है। प्रकृति दिन रात कार्य कर रही है, सूर्य दिन रात कार्य कर रहा है, हवाएँ दिन रात कार्य कर रही हैं, परमात्मा दिन रात चेतना दे रहा है। हम अगर कार्य से भागते फिरते हैं तो स्वयं ही अपने पैर पर कुल्हाड़ा मारते हैं।



जो काम, जो बात अपने बस की है, उसे तत्परता से करो। अपने कार्य को ईश्वर की पूजा समझो। राजव्यवस्था में भी अगर तत्परता नहीं है तो तत्परता बिगड़ जायेगी। तत्परता से जो काम अधिकारियों से लेना है, वह नहीं लेते क्योंकि रिश्वत मिल जाती है और वे लापरवाह हो जाते हैं। इस देश में 'ऑपरेशन' की जरूरत है। जो काम नहीं करता उसको तुरंत सजा मिले, तभी देश सुधरेगा।



शत्रु या विरोधी पक्ष की बात भी यदि देश व मानवता के हित की हो तो उसे आदर से स्वीकार करना चाहिए और अपने वाले की बात भी यदि देश के, धर्म के अनुकूल नहीं हो तो उसे नहीं मानना चाहिए।



आप लोग जहाँ भी हो, अपने जीवन को संयम और तत्परता से ऊपर उठाओ। परमात्मा हमेशा उन्नति में साथ देता है। पतन में परमात्मा साथ नहीं देता। पतन मे हमारी वासनाएँ, लापरवाही काम करती है। मुक्ति के रास्ते भगवान साथ देता है, प्रकृति साथ देती है। बंधन के लिए तो हमारी बेवकूफी, इन्द्रियों की गुलामी, लालच र हलका संग ही कारणरूप होता है। ऊँचा संग हो तो ईश्वर भी उत्थान में साथ देता है। यदि हम ईश्वर का स्मरण करें तो चाहे हमें हजार फटकार मिलें, हजारों तकलीफें आयें तो भी क्या? हम तो ईश्वर का संग करेंगे, संतों-शास्त्रों की शरण जायेंगे, श्रेष्ठ संग करेंगे और संयमी व तत्पर होकर अपना कार्य करेंगे-यही भाव रखना चाहिए।



हम सब मिलकर संकल्प करें कि लापरवाही, पलायनवाद को निकालकर, संयमी और तत्पर होकर अपने को बदलेंगे, समाज को बदलेंगे और लोक कल्याण हेतु तत्पर होकर देश को उन्नत करेंगे।