Saturday, January 21, 2012

वेलेन्टाईन डे की सच्चाई ...

 वेन्टाईलेन डे    कैसे शुरू हूआ...?  और आज................................




रोम के राजा क्लाउडियस ब्रहम्चर्य की महिमा से परिचित रहें होंगे, इसलिए अपने सैनिकों को शादी करने के लिए मना किया था ताकि वे शारीरिक बल और मानसिक दक्षता  से युद्ध  मे ं विजय प्राप्त कर सकें. सैनिको को शादी करने के लिये जबरदस्ती मना किया गया था. इसलिय   वेन्टाईलेन ने , टो स्वयं ईसाई पादरी होने के कारण  ब्रहम्चर्य  के विराधी नही हो सकते थे. गुप्त ढंग से उनकी शादियाँ करायी.राजा ने उनको दोषि घोषित किया और उन्हे फाँसी े दी गयी. सन्  446 से पोप गेलेसियस ने उनकी याद में , वेलेन्टाईन डे , मनाना शुरू किया.

     वेलेन्टाईन डे  मनाने वाले लोग वेलेन्टाईन का ही अपमान करते है. क्योकि वे शादी से पहले ही अपने प्रेमास्पद को वेलेन्टाईन कार्ड भेजकर उनसे प्रणय-संबंध स्थापित करने का प्रयास करते है. यदि    वेलेन्टाईन इससे सहमत होते तो वे शादियाँ कराते ही नही.

अत :भारत के युवान -युवतियाँ शादी से पहले प्रेम -दिवस के हाने अपने ओज-तेज-वीर्य का नाश करने सर्वनाश न करें परन्तु  मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें .

मेरे पू्ज्य गुरू देव  संत श्री आसाराम जी बापू का परम हितकारी संदेश..
प्रेम दिवस ( वेन्टाईलेन डे) के नाम पर विनाशकारी काम-विकार का विकास हो रहा है, जो आगे चलकर चिडचिडापन,तनाव, खोखलापन इस अंधपर्मपरा से सावधान हो  !

, इन्नोसन्टी रिपोर्ट कार्ड के अनुसार 28 विकसित देशो मे हर साल 13 से 19 वर्ष की 12 लाख 50 हजार किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं. उनमे से 5 लाख गर्भपात कराती हैं और 7 लाख 50 ङजार कुँवारी माता बन जाती हैं .  अमेरिका मे हर साल 4 लाख 94 हजार अनाथ बच्चे जन्म  लेते हैं. और 30 लाख किशोर-किशोरियाँ यौन रोगो के शिकार होते हैं.

यौन संबंध करनेवालो मे 25 % किशोर-किशोरियाँ यौन रोगो से पीडित हैं .
असुरक्षित यौन-संबंध करनेवालो मे 50 % को गोनोरिया ,33 % को जैनिटल  हर्पिस और एक प्रतिशत को ेडस का रोग होने की सम्भावना है .
एडस के नये रोगियो मे 25 % रोगी 22 वर्ष से छोटी उम्र के होते हैं. आज अमेरिका  के 33 % स्कूलो मे ंयौन-शिक्षा के अंतर्गत , केव संयम , की शिक्षा दी जाती है. िस के लिये अमेरिका ने 40 करोड से अधिक डाँलर  ( 20 अरब रूपये ) खर्च किये जाते हैं.





Wednesday, January 4, 2012

इसे आप चमत्कार कह सकते हैं -- "गीता जब मैं पढ़ता हूं..


इसे आप चमत्कार कह सकते हैं -- "गीता जब मैं पढ़ता हूं….. फिर मेरे चारों और क्‍या हो रहा इस की मुझे 
कुछ फिकर नहीं रहती है। मैं तो स्‍वय में डूब जाता हूं। और एक दीपक जलता रहता है बहार। और में अपने 
होश को मात्र सम्‍हाले रहता हूं। " - कशी नरेश




काशी नरेश का एक ऑपरेशन हुआ उन्‍नीस सौ दस में। पाँच डाक्‍टर यूरोप से ऑपरेशन के लिए आए। पर 
काशी नरेश ने कहा कि मैं किसी प्रकार का मादक द्रव नहीं ले सकता। क्‍योंकि मेंने मादक द्रव्‍य लेना छोड़ 


दिया है। तो मैं किसी भी तरह की बेहोश करने वाली कोई दवा, कोई इंजेक्‍शन, वह भी नहीं ले सकता, 
क्‍योंकि मादक द्रव मैंने त्‍याग दिये है। न मैं शराब पीता हूं, न सिगरेट पीता हूं, मैं चाय भी नहीं पीता। तो 


इसलिए ऑपरेशन तो करें आप—अपेंडिक्‍स का ऑपरेशन था। बड़ा ऑपरेशन होगा कैसे? इतनी भयंकर 
पीड़ा होगी, और आप चीखे-चिल्‍लाए, उछलने-कूदने लगे तो बहुत मुशिकल हो जाएगी। आप सह नहीं 
पाएंगे। उन्‍होंने कहा कि नहीं, मैं सह पाऊंगा। बस इतनी ही मुझे आज्ञा दें कि मैं अपना गीता का पाठ करता 
रहूँ। तो उन्‍होंने प्रयोग करके देखा पहले। उँगली काटी। तकलीफ़ें दीं, सूइयाँ चुभायीं, और उनसे कहा कि आप 
अपना…..वे अपना गीता का पाठ करते रहे। कोई दर्द का उन्‍हें पता न चला। फिर ऑपरेशन भी किया गया। 
वह पहला ऑपरेशन था पूरे मनुष्‍य जाति के इतिहास में, जिसमें किसी तरह के मादक-द्रव्‍य का कोई प्रयोग 
नहीं किया गया। काशी नरेश पूरे होश में रहे। ऑपरेशन हुआ। डाक्‍टर तो भरोसा न कर सके। जैसे कि लाश 
पड़ी हो सामने, जिंदा आदमी ह हो मुर्दा आदमी हो। ऑपरेशन के बाद उन्‍होंने पूछा कि यह चमत्‍कार है, 
आपने क्या क्‍या? उन्‍होंने कहा, मैंने कुछ भी नहीं किया। मैं सिर्फ होश सम्‍हाले रखा। और गीता पढ़ता रहा, 
और गीता जब मैं पढ़ता हूं, इसे जन्‍म भर से पढ़ रहा हूं। और गीता जब मैं पढ़ता हूं….. फिर मेरे चारों और 
क्‍या हो रहा इस की मुझे कुछ फिकर नहीं रहती है। मैं तो स्‍वय में डूब जाता हूं। और एक दीपक जलता 
रहता है बहार। और में अपने होश को मात्र सम्‍हाले रहता हूं।


एसे हमारे राजा महाराजा होते थे ...... जिनकी कहानियां आज पढने को भी नही मिलती .... हाँ इश्क विश्क के बारें मे पूछ सकते है कुछ भी बच्चो से .. मैं मानता हूँ इस मे सारा का सारा दोष हमारी सरकारों का है जिन्होंने sylabus से इन सब कहानियों को गायब सा कर दिया है .... इस बारें मे सोचने की जरुरत है ..आजकल फिल्मो को देख कर बचे भी बंदर छाप हो रहे है .देश धर्मं और परिवारवाद समाप्त हो रहीं है ..... लिखना बहुत कुछ चाहता हूँ..समय का आभाव है इसका जीकर अगले चिट्ठे मे करूँगा ..... 




आपका कँवर विक्रांत सिंह

विमान के आविष्कारक- पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे......

बंधु को हवाई जहाज के आविष्कार के लिए श्रेय दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 17 दिसम्बर 1903 हवाई जहाज उड़ाने का प्रदर्शन किया था। किन्तु बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि उससे लगभग 8 वर्ष पहले सन् 1895 में संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने “मारुतसखा” या
“मारुतशक्ति” नामक विमान का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया था जो कि पूर्णतः वैदिक तकनीकी पर आधारित था। पुणे केसरी नामक समाचारपत्र के अनुसार श्री तलपदे ने सन् 1895 में एक दिन (दुर्भाग्य से से सही दिनांक की जानकारी नहीं है) बंबई वर्तमान (मुंबई) के चौपाटी समुद्रतट में उपस्थित कई जिज्ञासु व्यक्तियों , जिनमें भारतीय अनेक न्यायविद्/ राष्ट्रवादी सर्वसाधारण जन के साथ ही महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराज सायाजी
राव गायकवाड़ जैसे विशिष्टजन सम्मिलित थे, के समक्ष अपने द्वारा निर्मित “चालकविहीन” विमान “मारुतशक्ति” के उड़ान का प्रदर्शन किया था। वहाँ उपस्थित समस्त जन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि टेक ऑफ करने के बाद “मारुतशक्ति” आकाश में लगभग 1500 फुट की ऊँचाई पर चक्कर लगाने लगा था। कुछ देर आकाश में चक्कर लगाने के के पश्चात् वह विमान धरती पर गिर पड़ा था।
यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और
वैज्ञानिक संस्थाओं/संगठनों पूरी पूरी जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जाना बदस्तूर जारी है और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करने/ करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई (हम सदा सन्तोषी और आत्ममुग्ध लोग जो है!)। 
कहा तो यह भी जाता है कि संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित एवं वैज्ञानिक तलपदे जी की यह सफलता भारत के तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को फूटी आँख भी नहीं सुहाई थी और उन्होंने बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे के
प्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे, पर दबाव डालकर श्री तलपदे के प्रयोगों को अवरोधित कर दिया था। महाराज गायकवाड़ की सहायता बन्द हो जाने पर अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए श्री तलपदे एक प्रकार से कर्ज में डूब गए। इसी बीच दुर्भाग्य से उनकी विदुषी पत्नी, जो कि उनके प्रयोगों में उनकी सहायक होने के साथ ही साथ उनकी प्रेरणा भी थीं, का देहावसान हो गया और अन्ततः सन् 1916 या 1917 में श्री तलपदे का भी स्वर्गवास हो गया। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।
श्री तलपदे का जन्म सन् 1864 में हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि
रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद्
स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः
महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान के अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ ग रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।
वन्दे मातरम... जय हिंद... जय भारत...